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संस्थापक
आधुनिक भारत के निर्माताओं में से एक, सर सय्यद अहमद खान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली में हुआ था। उन्होंने अपना कार्य लोक सेवक के रूप में आरंभ किया था।
1857 का विद्रोह, सर सय्यद अहमद के जीवन की महत्वपूर्ण परिवर्तकारी घटना थी। उन्होंने इस का पूर्वानुमान लगा लिया था कि मुस्लिम समुदाय के लिए; विशेष रूप से उत्तरी भारत में सामाजिक एवं राजनैतिक अस्तित्व बनाए रखने के लिए उन्हें अंग्रेज़ी भाषा एवं आधुनिक विज्ञान में निपुणता प्राप्त करनी होगी।
वे उन अग्रदूतों में से एक थे जिन्होंने पिछड़े तथा निर्धन मुस्लिम समाज के शक्तिकरण में शिक्षा की क्रांतिकारी भूमिका को महत्वपूर्ण माना। सर सय्यद अहमद न केवल आधुनिक भारत के महान राष्ट्र निर्माता थे वरन वे एक महान समाज सुधारक भी थे। विभिन्न स्कूलों को आरंभ करके उन्होंने मुस्लिम विश्वविद्यालय के निर्माण की भूमिका तैयार कर दी थी। मुसलमानों में वैज्ञानिक-चेतना निर्माण तथा पश्चिमी ज्ञान को भारतीयों की अपनी भाषा में उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने 1863 में ‘साइंटिफिक सोसाइटी’ की स्थापना की।
मार्च 1866 में, ‘साइंटिफिक सोसाइटी’ की पत्रिका ‘अलीगढ़ इंस्टिट्यूट गज़ेट’ का शुभारंभ किया, जिसके द्वारा पारंपरिक मुस्लिम समाज की सोच बदलने में सफलता प्राप्त हुई। अन्य कोई कमज़ोर व्यक्तित्व अपने विरुद्ध घोर को देखते हुए अपने कदम रोक सकता था लेकिन, सर सय्यद ने एक अन्य पत्रिका “तहज़ीबुल अख्लाक” को प्रकाशित कर विरोधियों को करार जवाब दिया जिसे अंग्रेज़ी में “मोहम्मडन सोशल रिफॉर्मर” शीर्षक से प्रकाशित किया गया।
सर सय्यद ने, 24 मई 1875 में अलीगढ़ में मदरसतुल उलूम की स्थापना की। लंदन की यात्रा के पश्चात् उन्होंने एम.ए.ओ. कॉलेज को ऑक्सफ़ोर्ड एवं कैंब्रिज विश्वविद्यालय के अनुरूप बनाया। इस्लामिक मूल्यों से समझौता किये बिना ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली के अनुरूप कॉलेज का निर्माण करना उनका उद्देश्य था।
वे इस कॉलेज द्वारा नए एवं पुराने तथा पूरब और पश्चिम का समन्वय करके इसका सेतु के रूप में प्रयोग करना चाहते थे। उस अवधि में उन्होंने पश्चिमी अधिगम पर आधारित प्रदानित अनुदेशों की अनिवार्यता एवं महत्व को स्पष्ट रूप से सराहा था। वे पश्चिमी शिक्षा के मूल्यों से अनभिज्ञ नहीं थे तथापि वह अतीत की समृद्ध विरासत को भी सुरक्षित रखते हुए भावी पीढ़ी को हस्तांतरित करना चाहते थे। डॉ. सर मोहम्मद इकबाल का मत है- सर सय्यद की महानता की प्रमुख बात यह थी की वह पहले भारतीय मुस्लिम थे जिन्होंने इस्लाम को नवीन दृष्टि से देखने की ज़रूरत को समझा तथा उसके लिए कार्य किया। वह पहले संवेदनशील व्यक्ति थे जिन्होंने आधुनिक युग पर प्रतिक्रिया दी।
सर सय्यद का उद्देश्य अलीगढ़ में केवल कॉलेज बनाने तक सीमित नहीं था। वे देशभर में मुस्लिम प्रबंधित शिक्षा संस्थानों की स्थापना करना चाहते थे। इसी उद्देश्य से उन्होंने अखिल भारतीय मुस्लिम शैक्षणिक सभा की स्थापना की जिसने राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों के उत्साह को पुनरुज्जीवित किया। अलीगढ़ आंदोलन ने मुसलमानों को शैक्षणिक संस्थान खोलने के लिए प्रेरित किया। यह भारत का अपनी तरह का प्रथम मुस्लिम ग़ैर-सरकारी संगठन था, जिसने मुसलमानों को गहरी नींद से जगाया तथा उनमें सामाजिक व राजनीतिक संवेदना को जागृत किया।
सर सय्यद ने उपमहाद्वीप के आधुनिक समाज के विकास में मूलभूत योगदान दिया। सर सय्यद के जीवनकाल में, 19वीं सदी की प्रतिष्ठित ब्रिटिश पत्रिका “द इंग्लिशमैन” में 17 नवम्बर 1885 को सर सय्यद के जीवनकाल में ही उनके विषय में, “आधुनिक इतिहास की श्रेष्ठ स्थिति का असाधारण चित्रांकन” विषय पर एक लेख प्रकाशित किया। 27 मार्च 1898 को सर सय्यद का देहांत हो गया तथा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की जामा मस्जिद में उन्हें दफनाया गया।
सर सैयद बिसेनट्री सेलिब्रेशन